राष्ट्र-विरोधी षड्यंत्र, जिहादी दुष्प्रचार के लिए तीन व्यक्तियों को आजीवन कारावास

10/1/2025, 11:05:33 AM
राजकोट, एक अक्टूबर (भाषा) गुजरात में राजकोट की एक सत्र अदालत ने पश्चिम बंगाल के तीन व्यक्तियों को युवाओं को कट्टरपंथी बनाने एवं राष्ट्र-विरोधी जिहादी दुष्प्रचार फैलाकर सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने का दोषी ठहराते हुए 'आखिरी सांस तक' आजीवन कारावास की बुधवार को सजा सुनाई। जिला सरकारी वकील एस के वोरा ने बताया कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आई बी पठान ने तीनों आरोपियों- अमन सिराज मलिक (23), अब्दुल शकूर अली शेख (20) और शफनवाज अबू शाहिद (23)- को दोषी ठहराया और उन्हें ''आखिरी सांस तक'' आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। गुजरात आतंकवाद-रोधी दस्ते (एटीएस) ने उन्हें जुलाई 2023 में गिरफ्तार किया था। एटीएस को उनके राजकोट के सोनी बाजार स्थित एक नकली आभूषण कारखाने में कारीगर के रूप में काम करने और एक स्थानीय मस्जिद से राष्ट्र-विरोधी जिहादी दुष्प्रचार करने तथा आतंकवादी संगठन अल-कायदा के लिए युवाओं की भर्ती करने एवं उन्हें कट्टर बनाने के वास्ते एक बांग्लादेशी गुर्गा (हैंडलर) के लिए काम करने के बारे में सूचना मिली थी। एटीएस ने खुफिया जानकारी के आधार पर उनमें से दो को राजकोट रेलवे स्टेशन से और तीसरे को एक आवासीय भवन से गिरफ्तार किया था। उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 121ए (आपराधिक बल के प्रदर्शन के माध्यम से केंद्र सरकार या राज्य सरकार को आतंकित करने की साजिश) और शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। आरोपियों के पास से एक देसी अर्ध-स्वचालित पिस्तौल, कारतूस, कट्टरपंथी साहित्य, वीडियो और अन्य सामग्री बरामद की गई। एटीएस ने तब कहा था कि उन्होंने बांग्लादेश स्थित अपने गुर्गे के संपर्क में रहने के लिए अत्यधिक 'एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग' ऐप का इस्तेमाल किया था। एटीएस के अनुसार, गुर्गे ने उन्हें अपने मकसद में शामिल करने के लिए दूसरों को कट्टरपंथी बनाने सहित विभिन्न कार्य करने के निर्देश दिए थे। एटीएस के अनुसार, आरोपियों में से एक ने एक विदेशी गुर्गे के संपर्क में रहने के लिए टेलीग्राम ऐप का इस्तेमाल किया था। वह गुर्गा बांग्लादेश में अल-कायदा का प्रमुख था। एटीएस ने कहा था कि बांग्लादेशी गुर्गे ने मलिक को 'जिहाद' और 'हिजरत' के लिए प्रेरित किया और उसे दूसरों को अपनी विचारधारा में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के लिए कहा। बहस के दौरान, वोरा ने साबित किया कि आरोपियों से जब्त किए गए मोबाइल के व्हाट्सऐप चैट से पता चला कि वे (आरोपी) मुस्लिम समुदाय के एक खास वर्ग को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए उकसा रहे थे। उन्होंने अदालत को बताया, इसके अलावा, उनके पास से जब्त की गई रिवॉल्वर और कारतूस से संकेत मिलता है कि वे किसी न किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे। अपने बचाव में, आरोपियों द्वारा गवाह बनाए गए दो मुस्लिम व्यक्तियों ने कहा कि आरोपियों को कभी भी मस्जिद से राष्ट्र-विरोधी प्रचार करते नहीं देखा गया। हालांकि, जिरह के दौरान, उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने मस्जिद में केवल 15-20 मिनट ही नमाज अदा की और उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि आरोपी दिन के बाकी घंटों में क्या करते थे। जिला सरकारी वकील ने ''आखिरी सांस तक'' आजीवन कारावास की वकालत करते हुए अदालत को बताया कि आरोपियों को जिहादी दुष्प्रचार के तहत इस तरह की गतिविधि करने के लिए प्रेरित किया गया था और अगर उन्हें कम सजा दी गई, तो रिहाई के बाद उनका इस्तेमाल आतंकवादी हमलों के लिए किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल से होने के बावजूद, आरोपी कश्मीर को लेकर सरकार-विरोधी दुष्प्रचार करने के लिए राजकोट तक आए थे।