Sultanpur News: 1857 की क्रांति, जहां फिरंगियों को दी गई थी चुनौती, जानें आजादी की कहानी

Sultanpur News: 1857 की क्रांति, जहां फिरंगियों को दी गई थी चुनौती, जानें आजादी की कहानी

10/1/2025, 12:26:45 PM

सुल्तानपुर. उत्तर प्रदेश का सुल्तानपुर जिला भारत की आजादी में अहम भूमिका निभा चुका है. जब 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तो सिर्फ मेरठ, बरेली और झांसी के ही क्रांतिकारियों ने भाग नहीं लिया बल्कि देश के कोने कोने से अन्य लोगों ने भी अपने रक्त से भारत की धरती को सिंचित किया. उसी में एक है सुल्तानपुर का चांदा स्थान जो 1857 की क्रांति का एक बेहतरीन सबूत और गवाह माना जाता है. ऐसे में चांदा की लड़ाई भारत की स्वतंत्रता में काफी अहम भूमिका निभाती है तो आइए जानते हैं 1857 में हुई चांदा की लड़ाई का क्या है इतिहास. रजवाड़े रामपुर ने दी थी शहादत वरिष्ठ कमलनयन पांडे लोकल 18 से बताते हैं कि चांदा की लड़ाई 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुल्तानपुर में हुई थी, जहां रजवाड़े रामपुर के लगभग 2 सौ से अधिक शूरवीरों ने अपनी शहादत दी थी. यह एक ऐतिहासिक लड़ाई थी जिसमें स्वतंत्रता के मतवालों ने फिरंगियों को हराकर सुल्तानपुर को आज़ाद कराया था और इस संघर्ष में जिले का खासा योगदान रहा था. यहां पर स्थित है चांदा लखनऊ-वाराणसी राजमार्ग पर स्थित 'चांदा' सुल्तानपुर जिले की लंभुआ तहसील का परगना है. ये वही स्थान है जहां आजादी के दीवानों ने लखनऊ की ओर बढ़ रहे फिरंगियों को सबसे पहले रोका था. 1857 ई. में अवध सरकार की ओर से सुल्तानपुर में मेंहदी हसन नाजिम नियुक्त था. जब बगावत का बिगुल बजा तो जिले के सभी तालुकेदार मेंहदी हसन के नेतृत्व में एकजुट हो गए. तालुकेदारों की इस फौज में विद्रोही सैनिकों के अलावा किसान भी शामिल थे. इस रियासत को बनाया गया लड़ाई का केंद्र विक्रम बृजेंद्र सिंह बताते हैं कि 1857 की लड़ाई में मुकाबले के लिए मेंहदी हसन ने सुल्तानपुर से दस किलोमीटर हसनपुर रियासत को केंद्र बनाया था. जब इसकी भनक कर्नल राउटन को लगी तो उसने भारी फौज-फाटे के साथ सुल्तानपुर कूच किया. और चांदा से पहले कोइरीपुर नाले के किनारे अंग्रेजों ने डेरा डाल दिया. उधर, मेंहदी हसन ने पांच हजार घुड़सवारों के साथ भदैंया नाले पर किलेबंदी कर ली. दोनों सेनाओं के बीच चांदा की धरती पर भीषण युद्ध हुआ. अंग्रेजी हुकूमत को दिया कड़ा संदेश वैसे तो यह युद्ध अंग्रेजों ने जीत लिया लेकिन इन जांबाजों की शहादत ने अंग्रेजी हुकूमत को हिला डाला. इसमें कालाकांकर के राजकुमार भी वीरगति को प्राप्त हो गए. अमेठी, हसनपुर, मेवपुर धवरुआ समेत कई तालुकदारों ने हिस्सा लिया था. हार के बावजूद क्रांतिकारियों के हौसले पस्त नहीं हुए और वे ब्रिटिश कंपनियों की टुकड़ियों पर बराबर हमले बोलते रहे और अंग्रेजों को आगे बढ़ने से रोकने में सफल भी रहे.