Lucknow Crime News: नकली दवाओं में 50% का कमीशन करवा रहा है सफेद कोट वालों से काला धंधा

Lucknow Crime News: नकली दवाओं में 50% का कमीशन करवा रहा है सफेद कोट वालों से काला धंधा

10/1/2025, 5:47:30 PM

लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी समेत पूरे प्रदेश में नकली दवाओं का गोरखधंधा लगातार फल फूल रहा है। इस धंधे में दवा कंपनी के कर्मचारियों से लेकर दवा व्यापारी और कुछ डॉक्टर्स तक शामिल हैं। नकली दवाओं के व्यापार में टैक्स चोरी होने से सरकार को करोड़ों के राजस्व का नुकसान हो रहा है। यूपी में हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हैदराबाद, पुदुचेरी आदि जगहों से नकली दवाओं की खेप लगातार आ रही है। यह पूरा कारोबार हवाला के जरिए चलाया जाता है, जो अब अरबों रुपए तक पहुंच चुका है। डॉक्टर बनवाते खास दवाएं इस धंधे में शातिर गिरोह के साथ-साथ कई डॉक्टर्स भी शामिल हैं। दवा एसोसिएशन के लोग बताते हैं कि कुछ डॉक्टर्स ऐसे लोगों से सांठगांठ कर खास तरह की दवाएं तैयार करवाते हैं, जो उनके आसपास कोई अन्य डॉक्टर नहीं लिख रहा होता है। ये दवाएं केवल उनके क्लीनिक के आसपास कुछ चंद मेडिकल स्टोर्स या स्टॉकिस्ट के पास ही उपलब्ध होती हैं। इनका रेट भी डॉक्टर अपने हिसाब से तय करवाता है। आमतौर पर 100 रुपए में मिल जाने वाले दवा की कॉपी बनाने पर वे 200 रुपए से लेकर 1200 रुपए भी तय कर देते हैं। ऐसी दवाओं की एफेकेसी अधिक नहीं होती है, क्योंकि ये दूसरी कंपनी की दवाओं की डुप्लीकेट के तौर पर तैयार होती हैं। इनपर खर्च कम और मुनाफा मोटा होता है। एक अनुमान के मुताबिक, इस तरह की दवाओं का बिजनेस करीब 5-10 फीसद तक हो चुका है। लोकल ब्रांड की दवाएं संदेह के घेरे में दवा कारोबारी बताते हैं कि नकली दवाओं से भी अधिक खतरे की बात यह है कि कई डॉक्टर कमीशन लेकर मरीजों को लोकल कंपनियों की दवाएं लिखते हैं। दरअसल, जब किसी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (एमआर) से डॉक्टर के संबंध अच्छे होते हैं और वो एमआर कंपनी छोड़ देता है, तो उसे पता होता है कि दवा कैसे बनती है। चंडीगढ़ में एक जगह पर बहुत कंपनियां हैं जो ऐसा मैटेरियल तैयार करने का काम करती हैं। वे वहां जाकर अपनी दवा बनवाते हैं और खुद की एमआरपी लिखवाते हैं, जिससे उन्हें 50-60 फीसद तक का कमीशन मिलता है। ये दवाएं आमतौर पर ब्रांड की महंगी दवाओं के मुकाबले काफी सस्ती होती है। पर ऐसी दवाओं की गुणवत्ता पर संदेह रहता है, जिससे मरीज को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता और स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। यह भी किसी नकली दवा से कम घातक नहीं है। इसलिए सरकार और प्रशासन उन डॉक्टरों पर भी सख्ती से नजर रखे जो कमीशन लेकर मरीजों को घटिया और लोकल दवाएं लिखते हैं। यहां से आती हैं नकली दवाएं एफएसडीए और एसटीएफ द्वारा नकली दवाओं का गोरखधंधा करने वाले सिंडिकेट के लोग लगातार पकड़े जा रहे हैं। पकड़े गए लोगों से पूछताछ के मुताबिक, नकली दवाएं हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गाजियाबाद, मेरठ व राजस्थान आदि जगहों से सप्लाई की जा रही हैं। हालांकि, अब इसमें हैदराबाद, पुदुचेरी जैसे साउथ के शहर भी जुड़ गये हैं, जहां नकली दवाओं को पैकेट में भर कर असली दवाओं के साथ भेजकर बेचा जा रहा है। इनकी नकली दवाएं ज्यादा दवा व्यापारियों के मुताबिक, नकली दवा ज्यादातर उसी बीमारी की बनती हैं जिनकी सबसे ज्यादा खपत होती है। जैसे कैंसर, बीपी, डायबिटीज, गैस व पेट आदि की दवाओं की नकली दवा ज्यादा पकड़ी जाती हैं। इसमें सिट्राजिन, पेनटाब डी एसआर, ओमेज, हार्ट की मेडिसिन एटोवा आदि की नकली दवाएं ज्यादा बनती हैं। इसके अलावा, डायबिटीज की कई दवाएं भी नकली पकड़ी जाती हैं। ये सब कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों की मिलीभगत के साथ तैयार कराई जाती है। जहां असली माल के साथ नकली माल को खपाने का काम किया जाता है। नकली दवा कारोबारी अब साउथ के शहरों से भी संचालन कर रहे हैं। हाल में हुई छापेमारी में इसकी पुष्टि हुई है। पूरा काम हवाला के जरिए होता है, जिसमें कंपनी के कर्मचारी तक शामिल होते हैं। -ब्रजेश कुमार, सहायक आयुक्त, फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन लोकल स्तर पर बनने वाली दवाओं की भी जांच होनी चाहिए, क्योंकि बड़ा खेल इनके माध्यम से ही होता है। इसमें मार्जिन और कमीशन का बड़ा फैक्टर साबित होता है।