शास्त्रीय संगीत के शिखर पुरुष पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन, 91 की उम्र में थमा सुरों का सागर, आज वाराणसी में होगा अंतिम संस्कार

शास्त्रीय संगीत के शिखर पुरुष पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन, 91 की उम्र में थमा सुरों का सागर, आज वाराणसी में होगा अंतिम संस्कार

10/2/2025, 1:43:50 AM

Varanasi News: भारतीय शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक पंडित छन्नूलाल मिश्रा का गुरुवार सुबह निधन हो गया। वह 91 साल के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने सुबह 4:15 बजे वाराणसी में अंतिम सांस ली। उनका इलाज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में चल रहा था। उनके निधन की खबर से संगीत जगत और उनके चाहने वालों में गहरा शोक है। उनका अंतिम संस्कार आज वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा। संगीत का लंबा और गौरवशाली सफर पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की खयाल और खास तौर पर पूर्वी ठुमरी शैली को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी गायकी में गहराई, भाव और एक अलग ही मिठास थी जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी। उनका जन्म 3 अगस्त 1936 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के हरिहरपुर गांव में हुआ था। संगीत की शुरुआत उन्होंने अपने पिता बदरी प्रसाद मिश्र से की। इसके बाद उन्होंने किराना घराने के उस्ताद अब्दुल घनी खान से गहराई से शास्त्रीय संगीत सीखा। वह प्रसिद्ध तबला वादक पंडित अनोखेलाल मिश्र के दामाद भी थे। फिल्मों में भी दी आवाज, 'आरक्षण' में गाए थे गाने सिर्फ मंच पर ही नहीं, पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने फिल्मों में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा। उन्होंने 2011 में आई प्रकाश झा की फिल्म 'आरक्षण' में 'सांस अलबेली' और 'कौन सी डोर' जैसे भावपूर्ण गाने गाए थे, जो काफी पसंद किए गए। सम्मानों की लंबी सूची पंडित छन्नूलाल मिश्रा को उनके संगीत योगदान के लिए कई बड़े पुरस्कार और सम्मान मिले:- - 2010 में पद्म भूषण - 2020 में पद्म विभूषण - भारत सरकार द्वारा संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप - उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार - बिहार संगीत शिरोमणि पुरस्कार - नौशाद अवॉर्ड - सुर सिंगार संसद (बॉम्बे) का शिरोमणि पुरस्कार कोरोना काल में हुआ पारिवारिक नुकसान कोरोना महामारी के दौरान पंडित छन्नूलाल मिश्र को बहुत बड़ा निजी दुख भी झेलना पड़ा। साल 2021 में उनकी पत्नी माणिक रानी मिश्र और बेटी संगीता मिश्र का कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया। इसके बाद भी उन्होंने संगीत से अपना जुड़ाव बनाए रखा। अंतिम समय में मिला सरकारी सहयोग अंतिम वर्षों में जब उनका स्वास्थ्य कमजोर होने लगा, तो मिर्जापुर प्रशासन ने उनकी देखभाल के लिए डॉक्टरों की एक विशेष टीम तैनात की थी। इसके अलावा, उन्हें राजनीतिक रूप से भी पहचान मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें वाराणसी सीट से अपने प्रस्तावक के रूप में चुना था। संगीत की विरासत हमेशा रहेगी जिंदा पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने ठुमरी, कजरी, छैत, कबीर भजन और तुलसीदास की रामायण जैसे पारंपरिक संगीत रूपों को गाकर अमर कर दिया। उनकी रिकॉर्डिंग्स आज भी संगीत प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं और हमेशा रहेंगी। संगीत जगत ने खोया एक अनमोल रत्न पंडित छन्नूलाल मिश्र का जाना भारतीय संगीत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। उनकी आवाज, उनका योगदान और उनकी शैली आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।