Bihar News: आजादी से पहले पटना में नहीं जलता था रावण, पाकिस्‍तान से आए लोगों ने शुरू की परंपरा

Bihar News: आजादी से पहले पटना में नहीं जलता था रावण, पाकिस्‍तान से आए लोगों ने शुरू की परंपरा

10/2/2025, 5:57:24 AM

Bihar News: पटना. बिहार में रावण दहन की परंपरा बहुत पुरानी नहीं है. पटना में रावण दहन की परंपरा आजादी के करीब 8 साल बाद 1955 में शुरू हुई. इससे पहले बिहार के किसी इलाके में रावण दहन का कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती है. पटना में भी इस परंपरा की शुरुआत किसी स्थानीय समाज ने नहीं की थी, बल्कि पहली बार रावण दहन का आयोजन पाकिस्तान से आये लोगों ने किया था. पहली बार जब रावण दहन हुआ था तो महज 300 लोग उसमें शामिल हुए थे. धीरे-धीरे यह परंपरा बिहार में फैलती गयी और आज की तरीख में पटना के गांधी मैदान एक बड़े आयोजन के रूप में इसे किया जाता है. 1947 में भारत विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पाकिस्तान के सिंध और लाहौर प्रांत से सैकड़ों की संख्या में हिंदू और सिख पटना आये. पाकिस्तान के कई हिस्सों में रावण दहन की परंपरा थी. उस वक्त प्रकाशित अखबारों से पता चलता है कि 1954 में पहली बार पटना में रावण दहन करने का फैसला लिया गया. पाकिस्तान के लाहौर से बिहार आए बक्शी राम गांधी और उनके भाई मोहन लाल गांधी ने पटना में रावण दहन समारोह की नींव डाली. 1954 में श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट का निर्माण किया और साल 1955 में पहली बार रावण दहन किया. टीआर मेहता, राधाकृष्ण मल्होत्रा, ओपी कोचर, पीके कोचर, किशन लाल सचदेवा श्री दशहरा कमेटी ट्रस्ट के पदाधिकारी बनाये गये. 1955 में रावण दहन समारोह के लिए पाकिस्तान से आये लोगों ने कुल 300 रुपये जमा किये. पटना के आर ब्लॉक चौराहा के बगल में रावण दहन का कार्यक्रम की शुरुआत की गई. साथ ही हार्डिंग पार्क के पास रामलीला का आयोजन किया गया. बाद में यह कार्यक्रम गांधी मैदान शिफ्ट कर दिया गया. 70 साल के सफर में चार दफा रावण दहन नहीं हो पाया. बक्शी राम गांधी और मोहनलाल गांधी के प्रयास से 70 साल पहले शुरु हुई इस परंपरा को 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने भव्यता प्रदान की. लालू यादव के प्रयास से पटना में रावण दहन का कार्यक्रम आज वृहद रूप ले चुका है. लालू प्रसाद बिहार के पहले मुख्यमंत्री हैं, जो गांधी मैदान में पाकिस्तान से आये समाज की ओर से आयोजित इस रावण दहन कार्यक्रम में शामिल हुए. गांधी मैदान में दशहरा का आयोजन की भव्यता 1990 के बाद ही आयी है. इसे ब्रांड बनाने में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की अहम भूमिका रही है.