खांसी सिरप से बच्चों की मौत, Safety साबित करने के लिए डॉक्टर ने खुद पिया - 8 घंटे सड़क पर मिला बेहोश

10/2/2025, 7:15:51 AM
नारी डेस्क : राजस्थान में सरकारी अस्पतालों से बांटे जा रहे एक खांसी के सिरप ने प्रदेशभर में हड़कंप मचा दिया है। यह सिरप बच्चों को इलाज के नाम पर दिया जा रहा था, लेकिन अब तक दो मासूमों की जान ले चुका है और दर्जनों बच्चों को बीमार कर चुका है। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि सिरप की गुणवत्ता पर उठे सवालों के बीच एक डॉक्टर ने खुद इसे पीकर सुरक्षित साबित करने की कोशिश की, लेकिन कुछ ही देर में वे 8 घंटे तक सड़क किनारे अचेत पड़ा मिला। इस मामले ने राज्य सरकार को भी हिला दिया है और अब दवा कंपनी पर जांच बैठा दी गई है। इस जहरीले सिरप ने सबसे पहले सीकर जिले में एक मासूम की जान ली। 5 साल का नितीश शाम तक बिल्कुल सामान्य था, यहां तक कि गरबा भी खेला, लेकिन रात में सिरप लेने के बाद सुबह तक उसकी मौत हो गई। दूसरी दर्दनाक घटना भरतपुर जिले के मल्हा गांव में हुई, जहां 2 साल का सम्राट सिरप पीते ही उल्टियां करने लगा और होश में नहीं आया। दुखद रूप से उसकी मौत हो गई, जबकि उसकी बहन और चचेरा भाई भी बीमार पड़े लेकिन इलाज से बच गए। भरतपुर के बयाना में बच्चों के बीमार पड़ने की खबर मिलते ही डॉ. ताराचंद योगी ने सिरप की सुरक्षा परखने के लिए खुद इसे पी लिया। लेकिन कुछ ही देर में उनकी हालत बिगड़ गई और वे सड़क किनारे अचेत होकर 8 घंटे तक पड़े रहे। परिजनों ने फोन ट्रैकिंग से उनकी लोकेशन पता कर उन्हें अस्पताल पहुंचाया। इस दौरान एंबुलेंस ड्राइवर ने भी सिरप पिया और बीमार हो गया, हालांकि इलाज के बाद उसकी जान बच गई। खतरनाक सिरप का असर बांसवाड़ा जिले में भी देखने को मिला, जहां 8 बच्चे बीमार पड़ गए। इनमें से एक 6 साल का बच्चा गंभीर हालत में पहुंच गया था, लेकिन डॉक्टरों की तत्परता और समय पर मिले इलाज से उसकी जान बचा ली गई। घोटाले के सामने आने के बाद राज्य सरकार हरकत में आई और तुरंत इस सिरप की 22 बैचों पर प्रतिबंध लगा दिया। जानकारी के मुताबिक, जुलाई से अब तक लगभग 1.33 लाख बोतलें बच्चों में बांटी जा चुकी थीं। जयपुर के एसएमएस (SMS) अस्पताल में मौजूद 8,200 बोतलें अब नष्ट की जाएंगी। दवा निर्माता कंपनी केसॉन फार्मा की सप्लाई पर रोक लगा दी गई है। गौर करने वाली बात यह है कि इसी कंपनी की एक और सिरप साल 2023 में क्वालिटी टेस्ट में फेल होकर पहले ही बैन की जा चुकी थी। इस पूरे मामले ने दवा आपूर्ति और गुणवत्ता नियंत्रण पर कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। जब जुलाई से लगातार यह सिरप बच्चों को बांटा जा रहा था, तो फिर टेस्टिंग में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई? क्या दवा की कोई सही फार्माकोलॉजिकल सुरक्षा जांच की गई थी या नहीं? साथ ही, संदिग्ध रिकॉर्ड रखने वाली कंपनी से बार-बार खरीदारी क्यों की गई? और सबसे अहम सवाल बच्चों की मौत की जिम्मेदारी आखिर किसकी है: निर्माता कंपनी की, दवा वितरक की या प्रशासन की? मृतक बच्चों के परिजन इसे लापरवाही नहीं बल्कि हत्या मान रहे हैं। उनका कहना है कि सिर्फ जांच ही नहीं बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों और कंपनी पर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए।