ब्रांडेड शूज, कपड़ों के शौकीनों के लिए Alert! हिला कर रख देगी खबर

10/2/2025, 6:49:56 AM
लुधियाना (राम): त्योहारों का मौसम आते ही शहर की मार्केटों में खरीदारी का जोश दोगुना हो जाता है। दिवाली, दशहरा और करवाचौथ जैसे मौके लोगों के लिए न सिर्फ धार्मिक और पारिवारिक उत्सव का समय होते हैं, बल्कि यह फैशन और शॉपिंग का भी सबसे बड़ा सीजन माना जाता है। खासकर युवा वर्ग ब्रांडेड जूते और कपड़े खरीदने में पीछे नहीं रहते। लेकिन इस चमक-दमक के बीच एक बड़ा धोखा भी छिपा है-शहर की गलियों और बड़े-बड़े शोरूमों में नकली माल धड़ल्ले से बिक रहा है। Adidas, Nike, Reebok, Puma जैसे इंटरनेशनल ब्रांड्स के नाम पर "फर्स्ट कॉपी", "सेकंड कॉपी" और "एक्सपोर्ट क्वालिटी" के नाम पर ठगी का कारोबार इतना बड़ा हो चुका है कि असली-नकली में फर्क करना आम ग्राहकों के लिए लगभग नामुमकिन हो गया है। त्योहारी सीजन में नकली शूज और कपड़ों का धंधा क्यों बढ़ता है? त्योहारी सीजन में बाजारों में भीड़ बढ़ने के साथ ही ब्रांडेड सामान की डिमांड भी आसमान छूने लगती है। लोग चाहते हैं कि त्योहारों पर वे अपने परिवार और दोस्तों को गिफ्ट करें या खुद के लिए कुछ स्टाइलिश और ट्रेंडी प्रोडक्ट खरीदें। लेकिन हर किसी की जेब ब्रांडेड जूतों और कपड़ों की असली कीमत नहीं उठा सकती। उदाहरण के तौर पर, नाइकी या एडीडास का एक ऑरिजिनल शूज जहां 8,000 से 12,000 रुपये तक का होता है, वहीं "फर्स्ट कॉपी" के नाम पर वही शूज 1,500 से 2,500 रुपये तक मिल जाता है। ग्राहक को लगता है कि यह एक बेहतरीन डील है। लेकिन असल में वह नकली प्रोडक्ट पर असली दाम खर्च कर देता है। दुकानदार ग्राहकों को लुभाने के लिए अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। वे कहते हैं कि यह "फर्स्ट कॉपी" है यानी ओरिजनल जैसी क्वालिटी वाला। लेकिन हकीकत यह है कि ब्रांडेड कंपनियों की शब्दावली में "फर्स्ट कॉपी" या "सेकंड कॉपी" जैसी कोई चीज होती ही नहीं। असल में ये सब डुप्लीकेट प्रोडक्ट होते हैं, जो छोटे स्तर पर बनी फैक्टरियों में तैयार किए जाते हैं। यहां तक कि जूतों और कपड़ों पर असली जैसा लोगो, टैग और बारकोड तक छाप दिए जाते हैं, जिससे कोई भी आसानी से धोखा खा सकता है। कंपनियों का नियम साफ है-हर शूज का एक मॉडल नंबर और बारकोड होता है, जिसकी वैधता तय होती है। अगर कोई स्टॉक समय पर न बिके तो उसे फैक्ट्री आउटलेट्स पर बेच दिया जाता है, न कि किसी लोकल बाजार में "फर्स्ट कॉपी" बनाकर। पंजाब का लुधियाना वैसे तो इंडस्ट्रियल हब माना जाता है, लेकिन यहां नकली ब्रांडेड माल बनाने का नेटवर्क भी बहुत बड़ा है। शहर के काली सड़क, बस्ती जोधेवाल, सलेम टाबरी और आसपास के कई इलाकों में गली-मोहल्लों में छोटी-छोटी फैक्टरियां चल रही हैं, जहां कपड़े और जूते पर नकली मार्का लगाकर असली जैसा माल तैयार किया जाता है। इन फैक्टरियों से बना नकली सामान सिर्फ लुधियाना तक सीमित नहीं है। इसे पंजाब के अलग-अलग शहरों, दिल्ली, हरियाणा और यहां तक कि ऑनलाइन मार्केटप्लेस तक सप्लाई किया जाता है। सोशल मीडिया पर इन दुकानदारों के वीडियो और फोटो खुलेआम घूम रहे हैं, जहां वे खुद को "एक्सपोर्ट क्वालिटी" शूज़ का सप्लायर बताते हैं। त्योहारी सीजन में हर कोई चाहता है कि वह अच्छा दिखे, स्टाइलिश कपड़े पहने और ट्रेंडी जूते डाले। लेकिन असली ब्रांडेड शूज़ हर किसी की पहुंच में नहीं होते। यही कारण है कि ग्राहक "फर्स्ट कॉपी" या "एक्सपोर्ट माल" जैसे लालच में फंस जाते हैं। लुधियाना के एक कॉलेज स्टूडेंट रोहित बताते हैं, "मैंने ऑनलाइन एक नाइकी एयर शूज़ खरीदा। कीमत 2,000 रुपये थी। देखने में बिल्कुल असली लग रहा था, लेकिन एक महीने भी नहीं चला। तब पता चला कि यह डुप्लीकेट था।" आज के दौर में ज्यादातर लोग ऑनलाइन शॉपिंग को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन यहां भी नकली प्रोडक्ट्स की बाढ़ आई हुई है। बड़ी-बड़ी ई-कॉमर्स साइट्स पर भी कभी-कभी नकली सामान मिल जाता है, वहीं छोटी और अनजानी वेबसाइट्स तो सिर्फ लोगों को ठगने के लिए चलाई जाती हैं। कुछ वेबसाइट्स असली ब्रांड का नाम तो नहीं लेतीं, लेकिन उससे मिलते-जुलते नामों का इस्तेमाल करती हैं। जैसे "Abibas" या "Pumma"। देखने में लोगो इतना मिलता-जुलता होता है कि ग्राहक एक झटके में धोखा खा जाए। नकली जूतों और कपड़ों का सबसे बड़ा नुकसान सिर्फ पैसे की बर्बादी नहीं है, बल्कि यह सेहत पर भी असर डाल सकता है। असली ब्रांडेड शूज़ रिसर्च और टेस्टिंग के बाद तैयार किए जाते हैं, जिनमें पैरों के लिए सही ग्रिप, कुशनिंग और कम्फर्ट का ध्यान रखा जाता है। लेकिन नकली जूतों में न तो सही क्वालिटी की सोल होती है और न ही टिकाऊपन। लंबे समय तक इन्हें पहनने से पैरों में दर्द, घुटनों पर असर और यहां तक कि रीढ़ की हड्डी पर भी दबाव बढ़ सकता है। सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि प्रशासन और कॉपीराइट एक्ट लागू करने वाली टीमें पूरी तरह चुप हैं। पिछले कई महीनों से न तो किसी तरह की छापेमारी हुई है और न ही कोई अभियान चलाया गया है। ग्राहकों का कहना है कि जब वे ब्रांडेड प्रोडक्ट की पूरी कीमत देते हैं तो उन्हें नकली माल देकर क्यों ठगा जा रहा है। उनकी मांग है कि इन फैक्टरियों और दुकानदारों पर तुरंत कार्रवाई हो, ताकि शहर में फर्जी माल का धंधा बंद हो सके। त्योहारों पर शॉपिंग का मजा तभी है जब आपके पैसे सही प्रोडक्ट पर खर्च हों। नकली माल खरीदकर आप न सिर्फ अपना पैसा गंवाते हैं बल्कि लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर अपनी सेहत से भी खिलवाड़ करते हैं। लुधियाना ही नहीं, देशभर में नकली ब्रांडेड प्रोडक्ट्स का नेटवर्क फैला हुआ है। अब जरूरत है कि प्रशासन इस पर सख्ती से नकेल कसे और ग्राहकों को भी जागरूक किया जाए। त्योहारी खरीदारी में अगर आप असली-नकली को पहचान गए, तो आपका त्योहार सच में खुशियों से भर जाएगा, वरना यह जश्न ठगी का शिकार बन सकता है।