Asaduddin Owaisi in Bihar Calls for Muslim Political Power Not Just Votes | मुस्लमानों मैं मर गया... खुद हक चाहिए तो! सीमांचल में ओवैसी ने ये क्या कह दिया | News Track in Hindi

Asaduddin Owaisi in Bihar Calls for Muslim Political Power Not Just Votes | मुस्लमानों मैं मर गया... खुद हक चाहिए तो! सीमांचल में ओवैसी ने ये क्या कह दिया | News Track in Hindi

10/2/2025, 8:54:49 AM

Bihar Politics: जनसभा में मंच पर खड़े असदुद्दीन ओवैसी की आवाज में आज वो सियासी गूंज थी जो अक्सर माइक से ज़्यादा मंशा से निकलती है। सीमांचल की जमीन पर जब उन्होंने 'हक के लिए खुद की सियासी लीडरशिप बनाओ' कहा, तो ऐसा लगा मानो लोकतंत्र की रसोई में सालों से बासी पड़ा अल्पसंख्यक अधिकारों का पुराना तवा फिर से गर्म हो गया हो। लेकिन इस बार थोड़ा ज्यादा तेल में डूबा हुआ। ओवैसी जो अकसर अपने बयानों से राजनीतिक पारे को उबाल पर रखते हैं, इस बार सीमांचल की जमीनी हकीकतों पर व्याख्यान देने आए। उन्होंने कहा कि हर बच्चा, हर मां, हर बुज़ुर्ग सब भारत के नागरिक हैं। ज़ाहिर है, यह लाइनें पहले भी कई बार लिखी जा चुकी हैं। संविधान में, भाषणों में, और अब चुनावी रजिस्टरों में। ओवैसी ने लगभग आधा भाषण इस बात पर दिया कि अगर इंसाफ चाहिए तो अपनी सियासी लीडरशिप बनानी होगी। मानो नेताओं का यह नया व्यापार मॉडल हो अपने वोट से अपनी दुकान खोलिए, नेताओं की बिरादरी में शामिल हो जाइए। उन्होंने बिहार के 19 फीसदी मुस्लिमों को याद दिलाया कि वे केवल प्रतिशत न बनें, प्रतिनिधित्व बनें। बाकी राजनीतिक दलों के हलकों में इसे ओवैसी स्टाइल वैकेंसी नोटिस भी कहा जा रहा है, जिसमें हर अल्पसंख्यक से अपील की जाती है कि वह अब सिर्फ ग्राहक न रहे, दुकानदार भी बने। ओवैसी ने सीमांचल के विकासहीन विकास पर भी सवाल उठाया। बिजली नहीं, अस्पताल नहीं, पुल नहीं। मतलब कि इलाके की हालत ऐसी है जैसे चुनावों के बाद नेताओं की स्मृति कुछ भी ठोस नहीं बचता। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग सीमांचल को बाहरी बताकर बदनाम कर रहे हैं। हालाँकि कौन हैं ये कुछ लोग, इसका नाम लेना उन्होंने शायद अगली रैली तक टाल दिया, या हो सकता है कुछ लोग अब एक स्थायी काल्पनिक दुश्मन की तरह उनके भाषण का अहम किरदार बन गए हों जैसे फिल्मों में 'अंधेरे का साया'। पतंग छाप को वोट देने की अपील के साथ उन्होंने नौजवानों से कहा कि सिर्फ नारों से कुछ नहीं होगा बल्कि वोट से होगा। अब यह बात कितनी पुरानी है? शायद जितनी पुराने भारत में चुनाव आयोग के फॉर्म। लेकिन ओवैसी के अंदाज़ में हर पुरानी बात को नया चटक रंग लग जाता है। बिल्कुल पतंग की तरह, जो उड़ी तो बहुत बार, मगर कटती भी जल्दी है। उनका यह कहना कि अगर संगठित हो जाएं तो हमें भी वही सुविधाएं मिलेंगी जो शहरवालों को मिलती हैं, कुछ वैसा ही है जैसे कोई कहे कि अगर आप रोज सुबह सूरज की पूजा करेंगे तो बिजली मुफ्त मिल जाएगी। ओवैसी का भाषण एक बार फिर उस राजनीति की याद दिलाता है जो भाषणों से भरपूर और नीतियों से खाली होती है। मगर इतना तय है कि उन्होंने सीमांचल में मौजूद राजनीतिक शून्य में एक बार फिर अपने शब्दों की पतंग उड़ाई है हवा कितनी साथ देगी, ये वक्त बताएगा। फिलहाल सीमांचल के लोग फिर से यह तय करने की दहलीज पर हैं कि वे वोट देंगे। किसी पुराने नाम पर, या किसी नई उम्मीद पर। और जब तक निर्णय नहीं होता, ओवैसी की पतंग आकाश में घूमती रहेगी। कुछ देर हवा के भरोसे, कुछ देर भाषणों के।